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Wednesday, 9 April 2025

वो लाल बिंदिया

 वो लाल बिंदिया 

ज़रा देखो तो !

झुर्री पड़े माथे पर गजब ढाती वो लाल बिंदिया !

गड्ढे पड़े गालों पर छायी लालिमा !

चाँदी से चमकते बालों में लाल सिन्दूर 

सिकुड़े हुए ओठों पर लगी लाली और 

उस पर लुभाती मंद-मंद मुस्कान 

कितनों का जी न चुरा लेगी !

चोरी-चोरी देखने को आतुर हैं 

कितने जवां दिल !"

और और 

उस पर खूबी ये कि 

मोहतरमा अपनी इस खूबी से बेखबर नहीं। 

      (अज्ञात यौवना की तरह )

उसे सब ज्ञात है कि  

वे कहाँ-कहाँ किस-किस पर बिजली गिरा रहीं हैं। 

दुनिया का सारा खजाना तो इस बिंदिया में ही बसा है।

हाय रे !कितनों पर ज़ुल्म ढाती है 

भारतीय संस्कारों का प्रदर्शन करती ,

बुढ़ापे की ये "लाल बिंदिया !!"

"अजर-अमर रहे  ऐसी ये "लाल बिंदिया!" 

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