वो लाल बिंदिया
ज़रा देखो तो !
झुर्री पड़े माथे पर वो बड़ी लाल बिंदिया !
गड्ढे पड़े गालों पर आयी लालिमा !
चांदी से चमकते, झिलमिलाते बालों में लाल सिन्दूर !
सिकुड़े हुए ओठों पर लगी लाली,
!और लजीले ओठों पर लुभाती मंद-मंद मुस्कान !
कितनों का जी न चुरा लेती होगी!
चोरी-चोरी देखने को आतुर कितने जवान दिल !
और उस पर खूबी ये,
कि अपनी इस खूबी से ये मोहतरमा बेखबर नहीं हैं!
(अज्ञात यौवना की तरह )
उन्हें सब पता है कि वो कहाँ-कहाँ,किस-किस पर बिजली गिरा रही हैं।
सारी धन-दौलत तो इस बिंदिया में ही बसी है !
हाय रे !
भारतीय संस्कारों का प्रदर्शन करती कितनों पर जुल्म ढाती बुढ़ापे की
" ये लाल बिंदिया !"
अजर-अमर रहे ऐसी ये लाल बिंदिया।
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