Sunday, 6 October 2019

मेरी बिट्टू के साथ की मधुर यादें

       मेरी बिट्टू 

    ज़िन्दगी की शाम होती है आलीशान ,
    ना कोई  काम न कोई धाम,
    खाने और सोने का काम,
    मैं बुड्ढी होना चाहती हूँ।
तरह से शब्दों में पिरो कर आनन्द के काबिल बनाया है।

आज वो चौदह वर्ष की हैं अब कहती हैं , नहीं मैं बुड्ढी नहीं होना चाहती।

                             ****

   जब मेरी बिट्टू लगभग ढाई-तीन साल की होगी ,मेरे साथ एक मैगज़ीन के पेज पलट रही थी ,कि 
अचानक एक पेज , जिस पर एक मॉडल का चित्र , जिसमें वह पाश्चात्य वेश-भूषा के वस्त्र 
पहने हुए थी , देखते ही बोली -" देखो दादी, कैसे टूटे फूटे कपड़े  पहने हुई है।" सुन कर हंसी आयी। 
आज जब वो टीन एज में हैं , मैं याद दिलाती हूँ तो हँसती हुई कहती है , " मुझे तो टूटे-फूटे कपड़े अच्छे लगते हैं।"
मुझे भी हँसी आगयी  , सोचा ये है बदले हुए वातावरण या समाज का प्रभाव। समाज के साथ चलना ज़रूरी और 
ठीक भी है। उसने तो ठीक ही कहा। 

                                 ***

Sunday, 29 September 2019

ऐसी थी वो ----

                      ऐसी थी वो --------
        

          अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी  है ,सकारात्मक होना।जीवन में जो कुछ मिलता  है,उसे सोचने के दो तरीके हैं नेगेटिव और पोज़िटिव।दोनों ही व्यक्तित्त्व के अंग हैं। अंतर यही है कि पॉज़िटिव सोच आपको संतुष्ट व प्रसन्न रखती है , शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से। ईश्वर ने उसे नकारात्मकता से बचाया है,इसका अर्थ ये नहीं कि वह कभी दुखी नहीं होती लेकिन कुछ ही समय के बाद वह फ्रेश होजाती ,भूल जाती,याद रहता कि उस समय साथ कौन थे। किसने सँभाला, किसने किस तरह सहायता की। कभी कभी तो लगता है मानो उसे किसी  एक देवदूत ने उठा लिया हो और  सारी ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारी लेली अपने ऊपर ।

    जिन परिस्थितियों में समय व्यतीत हुआ वे चाहे कैसी भी रही हों,पढ़ाई से जुड़ी या फिर खाने-पीने से जुड़ी या फिर घर के काम धाम से,कभी भी उपेक्षित महसूस नहीं किया उसने । सब का अहसान ही माना। सबके बीच खेलना-कूदना ,हँसना-बोलना और खुश रहना।वो कहती है  कि मुझे काम का आलस्य न था दूसरी बात वो कहती कि मुझे काम करने का शौक था इसलिए जीना बहुत आसान होगया था।  

यहां तक कि यदा-कदा अपने बचपने में उससे ही कुछ ग़लत व्यवहार हुआ जिसे आज भी याद कर वो दुखी होती है, पर कभी किसीने कुछ नहीं कहा ये भी उसे आज याद है. । आज जिस योग्यता व सम्मान के साथ वो जी रही है तो वो उन कठिनाइयों में व्यतीत किया समय ही इसका मुख्य कारण है।वो समय कष्ट या दुःख का नहीं वरन जीवन  को सुख पूर्वक जीने का मज़बूत आधार मानती है वह । बड़ा सम्बल मानती है उस समय को।परिवार में हर व्यक्ति से बहुत प्यार व सम्मान मिला और वो आज भी प्राप्त है।

    उस समय को व्यतीत करने में सकारात्मकता  लाने वाले परम परमेश्वर,भगवान ही थे जो आज भी हैं। न उसने कभी किसी में  बुरा देखा, न सोचा  भगवान  के बताये रास्ते पर चलती गयी। इसीलिए विगत जीवन की बहुत सारी कड़वी  बातें जब कोई कहता है,सुनाता है उसे तो " ईमानदारी से कहती है कि वे बातें मुझे याद ही नहीं हैं या उन्हें मैं अधिक महत्व ही नहीं देती।" वे परिस्थितियाँ आगामी यानि वर्तमान जीवन का  आधार  बनी और उसे जीने  की कुशलता ,जीने की कला  सिखाई। आज वो स्वयं को  सुखी,अनन्यतम सुखी  मानती है । कहती है कि "मुझ जैसा भाग्यशाली कोई नहीं क्योंकि भगवान की मुझ पर विशेष कृपा रही है मुझे सबसे सीखने को मिला,सबकी अच्छी बातें मुझे याद रहीं और कोशिश भी है,आज भी अनुसरण करने  की।"

                                                            ॐ नमः शिवाय -----

                                                                           ***